जैसे जैसे कोविड के साथ समय गुजरता जा रहा है, वैसे वैसे इसने हमें अलग अलग नज़रिये से जीवन को देखने व जीवन जीने के बारें में सिखाया है।
कोविड-19
कोविड-19 महामारी ने विश्व पर अपना बहुत गहरा प्रभाव छोड़ दिया है, जिसने जीवन जीने के तरीके में असामान्य परिवर्तन ला दिए हैं। जब से मानव समाज विकसित हुआ है उसके बाद से शायद यह सबसे ज्यादा प्रभावशील बीमारी है जिसने लगभग पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लिया है, शायद ही किसी ने इससे पहले विचार किया होगा कि एक छोटा सा वायरस पूरे विश्व को नकारात्मक ढंग से प्रभावित कर पायेगा। इस वायरस की वजह से आज पूरा विश्व लॉक डाउन की अवस्था में है। इसने अपने देश के साथ साथ पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है।इसकी वजह से लाखों लोगों का रोजगार छिन गया,मध्यम वर्ग आय के व्यक्ति को भी इसने नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है, दैनिक मजदूरी पर अपने परिवार का पालन पोषण करने वालों को भुखमरी के कारण मौत के मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है।
सकारात्मकता
लेकिन इस लॉक डाउन के कुछ अनदेखे सकारत्मक प्रभाव भी हमारे जीवन पर पड़े हैं। घर पर समय न देने वाले व्यक्ति को घर के और ज्यादा समीप ले आया है, भाग दौड़ भारी ज़िन्दगी से कुछ समय की राहत दी,जिससे व्यक्ति अपने स्वयं के बारे में सोचने के लिए समय मिला है। प्रकृति पर इसका अनचाहा बहुत ज्यादा सकारत्मक प्रभाव देखने को मिला,लोक डाउन के कारण वातावरण लगभग पूर्णतः स्वच्छ हो गया था,नदियों के पानी का रंग भी बदल गया ,शायद ही आज की युवा पीढ़ी ने नदी के इतने साफ पानी का कभी अनुभव किया हो।।
चाहे या ना चाहे इसे हमें अपने जीवन का हिस्सा बनना होगा, हम यह कार्य पहले भी कही बार कर चुके हैं , ऐसे कई घटनाएं पहले भी मनुष्य जीवन में हुई से जिसने पुरानी रीत से चलते मनुष्य जीवन की आदतें बदल है। बस फ़र्क इतना है कि आज के परिवर्तनों ने हमें तुरंत और अनिवार्य रूप से बदलने को मजबूर कर दिया है, आज भी कई बीमारी हैं जिनकी वैक्सीन आज तक नहीं बनी लेकिन फिर भी मानव ने अपना जीवन उस बीमारी से बचाव के अनुकूल रूप में डाल लिया है। आगे हम कुछ उन्हीं बीमारियों के कारण आये बदलाव के बारे में चर्चा करेंगे ।
पहले ये जानते हैं हमारे देश में कोविड-19 को लेकर क्या माहौल है। और किस प्रकार हम अपने आप को सुरक्षित रख सकते हैं।
भारत जैसे देश में,गांव के क्षेत्र में अधिकतर और कुछ शहरी व्यक्ति की कोविड को सोच यह है की " कछु न है कोरोना-वोरोना जाए होने होयगो हो जावेगो" ।। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि " आनी होगी(म्रत्यु) तो आ जावेगी "। इस सोच के चलते व्यक्ति अपने व दूसरे के बचाव में कोई कदम नहीं उठाता है। ना वह मास्क का प्रयोग करता है ना सामाजिक दूरी का। इस अज्ञानता के चलते यह वायरस हमें किसी भी हद तक नुकसान पहुंचा सकता ।। इस नियम का पालन न करने की अडिगता के कारण प्रशासन को मज़बूरन शख़्ति दिखानी पड़ती है। जिससे उन्हें कई बार अज्ञानता के कारण जन्मे गुस्से का भी सामना करना पड़ता है। खैर ये भारत देश है यहां व्यक्ति के जान से ज्यादा परंपराओं का मान हैं। हमें अपनी रूढ़िवादी सोच से बाहर आना होगा।
खैर हम भी कभी न कभी जरूर बदलेंगे ।।
और हमें बदलना ही होगा अन्यथा यह अभी हुये नुक्सान से ज्यादा क्षति पहुंचा सकता है। जो कि मानव सभ्यता के लिए अहितकर साबित होगा।।
कुछ बीमारी या महामारी जिसने हमारे जीवन में परिवर्तन लाये,हमारी आदतें बदली।। वैसा ही बदलाब हमें अभी अपनाने की जरूरत है।।
भाग-2
आगे जारी है........
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-Naman Jain
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